उत्तराखण्ड

फर्जीवाड़े के काले कारनामे आए सामने, पढ़िए पूरी खबऱ

देहरादून। सहारनपुर से 31 बक्सों में भरकर लाए गए 150 साल पुराने भू-दस्तावेजों से फर्जीवाड़े के काले कारनामे निकल कर सामने आने लगे हैं। बेशकीमती जमीनों को कब्जाने के लिए दस्तावेजों में की गई छेड़छाड़ पकड़ में आने के बाद अबतक पहले से दर्ज पांच मुकदमों के बाद दो नए मुकदमे बुधवार को दर्ज कर लिए गए हैं। यह मुकदमे 1958 में हुई पंजीकृत रजिस्ट्रियों में छेड़छाड़ को लेकर दर्ज किए गए। कोतवाली पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है, जबकि मुकदमा सहायक महानिरीक्षक निबंधन संदीप श्रीवास्तव की ओर से दर्ज कराया गया है।

पुलिस ने जिन मामलों में फर्जीवाड़े पकड़े हैं, वह सभी बैनामे 1958 में हुए थे और सहारनपुर के अभिलेखागार में इनके दस्तावेज रखे हुए थे। जमीनों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कब्जाने का काम तेज हुआ तो सहारनपुर से यह 31 बक्से मंगवाए गए। इनकी जांच में जिल्द संख्या 549 वर्ष 1958 प्रकरण, जिल्द संख्या 555 वर्ष 1958 प्रकरण में दस्तावेजों से छेड़छाड़ पाई गई। इसके आधार पर अलग-अलग मुकदमे दर्ज कराए गए हैं।

दस्तावेजों में जिल्द की बाइंडिंग खुली हुई मिली

पुलिस को जांच में कई जिल्दों में लगे दस्तावेजों पर शक है। खासकर जिल्द संख्या 549 के दस्तावेजों पर सदेह प्रतीत हो रहा है। जांच में पाया गया कि अभिलेखों से छेडछाड़ की गई है। सहारनपुर के उप निबंधक कार्यालय से प्राप्त 1958 के दस्तावेजों में जिल्द की बाइंडिंग खुली हुई मिली है। जिल्द में 0.43 एकड़ मौजा ब्राह्मणवाला की जमीन को बेचने का उल्लेख है, जबकि इसके ऊपरी हिस्से में बनी सारणी में अंकित प्रविष्टि ओवर राइटिंग प्रतीत होती है।
इसी तरह एक अन्य पेज 69 के निचले हिस्से में लाल रंग की स्याही सामान्य तौर पर प्रयुुक्त स्याही से भिन्न है। क्रेता व विक्रेता के चिह्निंकत नाम और चिह्नांकन अन्य दस्तावेजों पर किए चिह्नांकन से पूरी तरह भिन्न हैं। प्रयुक्त हस्तलेख और प्रयोग की गई स्याही अन्य हस्तलेख और स्याही से भिन्न है। एक अन्य पेज पर कटिंग की गई है, जबकि उस पर कोई हस्ताक्षर नहीं हैं।

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