उत्तराखण्ड

वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने व्यक्त की उत्तराखंड वासियों की पीड़ा, कही ये बात

देहरादून। उत्तराखंड की बेटी, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी, प्रसिद्ध जनसेवी एवं जनता कैबिनेट पार्टी (जेसीपी) की केंद्रीय अध्यक्ष भावना पांडे ने समस्त उत्तराखंड वासियों के सामने एक बड़ा सवाल रखते हुए कहा कि “उत्तराखंडी! तू है कौन? कहाँ से आया? कहाँ है जाना? तेरा कर्म क्या है? तेरा धर्म क्या है? तूने अलग राज्य माँगा, तूझे मुजफ्फरनगर कांड, जेल, लाठी, गोली और मुकदमे झेलने पड़े किन्तु इतनी कुर्बानियों के बावजूद आज भी हम उत्तराखंड वासियों की हालत दयनीय बनी हुई है।

वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने उत्तराखंड वासियों की पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य बनाने की घोषणा मात्र से ही यहाँ के निवासियों का गला घोंटना शुरू कर दिया गया। 27% आरक्षण, गैरसैण प्रस्तावित सचिवालय के लिए आवंटित फण्ड, गैरसैण में प्रस्तावित अपर शिक्षा निर्देशलय भवन आदि समाप्त कर दिया गया। आनन फानन में उत्तराखंड के अंदर रिक्त पड़े लगभग 15 से 16 हजार सरकारी पदों पर बाहरी लोगों को भर दिया गया।

उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा पहाड़ी जिलों के लिए नितिगत फैसला लेकर राशन में जबरदस्त कटौती की गईं। प्रदेश में वन अधिनियम को और अधिक सख्त बना दिया गया। कई पनबिजली संयत्रो और पर्यटन विभाग के भूखँड़ों को निजी हाथों में बेच दिया गया। पहाड़ के मेहनती लोगों की आदत बिगाड़ने के लिए जगह-जगह शराब के ठेके खोल दिए गए और खनन माफियों को खुली छूट दे दी गईं।

उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने कहा कि प्रदेशवासी मज़बूरों की तरह मौन हैं। पृथक राज्य के गठन के समय, उत्तराखंडियों के बीच पहाड़ और मैदान के नाम की खाई पैदा करने के लिए कभी हरिद्वार पर तो कभी ऊधमसिंह नगर पर विवाद खड़ा करवाया गया। केंद्र से भेजे गए राज्य पुनर्गठन विधेयक में 26 संशोधन राज्य विधानसभा ने किए और 3 संशोधन संसद में हुए, जिनके माध्यम से हमारी संपत्तियों पर अधिकार बाहर वालों दिया गया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की सीमा के पास देहरादून में अस्थाई राजधानी के नाम पर विवादित और कर्ज में डूबा राज्य हमें दिया गया और हमारे जन प्रतिनिधि सदनो में मौन व तमाशबीन बने रहे।

प्रसिद्ध जनसेवी एवं उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने कहा कि उन्होंने जीवन में बड़ा संघर्ष किया है। उनकी कम उम्र के दौरान ही उनके पिता जी का स्वर्गवास हो गया, जिससे छोटे भाई-बहनों समेत पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके कांधों पर आ गई। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के कारण वे अपनी खुशियों को ही भूल गईं।जिस कारण 35 वर्ष की आयु में उनका विवाह एक एनआरआई ब्राह्मण व्यक्ति के साथ हुआ। उनके वैवाहिक जीवन की गाड़ी ज्यादा दिनों तक न चल सकी और कुछ समय पश्चात वे अलग हो गए।

अपने संघर्ष का जिक्र करते हुए वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने कहा कि परिवार की जिम्मेदारियों के बावजूद उन्होंने अपने राज्य एवं मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं भुलाया और पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन में कूद गईं। उन्होंने राज्य आंदोलन में बढ़-चढ़कर शिरकत की और पुलिस की यातनाएं सही। उन्होंने कहा कि बड़े ही संघर्षों और कुर्बानियों के बाद हमें हमारा उत्तराखंड मिला है, जिसे हम आंदोलनकारी राजनेताओं के हाथों बर्बाद होते नहीं देख सकते।

उन्होंने कहा कि आज उनके पास ईश्वर का दिया सबकुछ हैं। अपने कठोर संघर्ष और कड़ी मेहनत के बूते आज वे सफलता की बुलंदियों पर पहुंची हैं। प्रभु की कृपा से उनका एक बेटा भी है एवं किसी चीज की कोई कमी नहीं है, वे अपना पूरा जीवन आराम से व्यतीत कर सकती हैं। बावजूद इसके वे राज्य एवं राज्यवासियों की सेवा में जुटी रहती हैं। प्रदेश के बेरोजगार युवाओं और महिलाओं के हित के लिए संघर्ष करतीं नज़र आती हैं। साथ ही बढ़-चढ़कर वे जनसेवा के कार्य करती रहती हैं। उनका कहना है कि वे अपने गरीबी और संघर्ष के दिनों को कभी भुला नहीं सकतीं इसलिए उनके पांव ज़मीन पर ही रहते हैं, सफलता को कभी उन्होंने सिर पर हावी नहीं होने दिया। उनका मानना है कि जो पीड़ा और तकलीफ उन्होंने सही है वो किसी और को न झेलनी पड़े, वे इसी प्रयास में जुटी रहती हैं एवं आमजन की आवाज़ बनकर संघर्ष करती रहती हैं। उनका कहना है कि उत्तराखंड के हित के लिए उन्हें फिर से बड़ा आंदोलन करना पड़ जाए तो भी वे पीछे नहीं हटेंगी।

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